भक्ति साहित्यराजस्थानी भाषा एवं साहित्य

भक्ति साहित्य री प्रस्तावना और उद्देश्य

भक्ति साहित्य री प्रस्तावना और उद्देश्य

प्रस्तावना

भक्ती आन्दोलन अेक अैङो आन्दोलन हो जको भारतीय गाँवां रै अणपढ लोगां में फैल्यो। इण आन्दोलन रा सूत्रधार संत अर भगत हा जकां में ज्यादातर कम भण्या-लिख्या या अणभणेङा हा पण वांनै जिन्दगी रो अनुभव घणो गैहरो हो अर बै आम मिनख सूं जुङेडा हा।

आज तक पूजा-पाठ रो अधिकार पुरोहितां अर बडै लोगां नै हो। तुलसीदास हुवै चाहै कबीर दोनुवांइ इणरी जङा हिलायदी। तुलसी रा राम, सबर, भील, किरात, बनवासी अर अन्त्यज रा सब सूं पैली हा अर निसाद नै भरत सम भ्राता’ कयो अर सबरी रा झूठां बोर खाया।

दूजै कानी संत कवियाँ ‘जात-पांत पूछे नहिं कोई। हरि को भजे सो हरि को होई।।’

कैय’र भगत रो मार्ग ‘सर्व सुलभ’ करवा दियौ। इण भगती आन्दोलन सारू कैई विद्वानां रो कैवणो है कै इणरो उद्भव भारत में विदेसी सत्ता रै कब्जै रै कारण हुयौ पण बाद री खोज सूं आ बात सफा झूठ निकळी। विदेसी सत्ता रै कारण इण आन्दोलन मैं की तेजी जरूर आइ पण इण री जङां तो भारतीय संस्कृति मैं इ विराजै। इण री विचार धारा अर दार्सनिक
पृष्ठभूमि विसुद्ध भारतीय है।

हाँ ! इत्तै लम्बै अरसै तक चालणै रै कारण इण पर दूजी विचार धारावां रो असर जरूर पङ्यौ। ओ जरूरी भी हो क्यूं कै अलग-अलग जात-धरम रा लोग जद अेक-दूजै रै नेङै आवैला तो आदान-प्रदान हुवैलोइ । इणीज कारण इण आन्दोलन पर बौद्ध, जैन, इस्लाम आद दूजै धरमां अर सम्प्रदायां री विचारधारा रौ असर पङ्यो।

उद्देश्य

भारतीय साहित्य में भगती काल घणो महताऊ है। उतराद सू दिखणाद लग आखै भारत में ओ भगती आन्दोलन देसी भासावां रै माध्यम सूं हुयौ।

इण आन्दोलन रै विस्तार अर महत्त्व बाबत डाॅ. रामविलाश शर्मा रौ कैवणो है, ‘‘यह भगती आन्दोलन ब्रह्म देश अफगानिस्तान और इरान की सीमाओं पर रुक जाता है। सिंध, कश्मीर, पंजाब, बंगाल, महाराष्ट्र आंध्र, तमिलनाडु आदि प्रदेशों पर भगती आन्दोलन की धारा पूरे वेग से बहती है।

भगत कवियों ने विभिन्न प्रदेशों को राष्ट्रीय एकता के सूत्र में बांधने में कितना बङा काम किया था, इसका मूल्य आंकना सहज नहीं है। इनके पास राजनीति शास्त्र के कोई ऐसे परिचित सूत्र
नहीं थे, जिन्हें वे आए दिन दोहराते हुए जनता को एकताबद्ध करते। उन्होंने भावनात्मक रूप से जनता को एक किया। इस भावात्कम एकता में मुख्य भाव था भगती का’’।

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