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करणी माता

करणी माता

विक्रमी संवत 1594 रै आसोज रौ महीनौ चाल रैयो हो। करणीजी आपरी बैना सूं मिलण खातर गांव खारोङा गया हा। वठै अेक खाती रैया करतौ जिकै रौ नांव बन्नो हौ। बन्नो जलम र्सूं इ देख नीं सकतौ हो, पण वौ करणीजी जो परम भगत हौ।

करणीजी उण सूं अेकांत मांय मिळया अर उणनै कैयो कै म्हूं थने थोङी बखत वास्ते देखण री सगती देऊंला, उण बखत तूं म्हारौ असली रूप देख’र उण री मूरत बणाई जै फेर जद बा मूरत पूरी हुय जावै तो उण मूरत नै सिरांणै राख’र सो जाजे। थारी आंख जद खुलेला तद तूं देसनोक में हुवैला। वठै जिकौ गुम्भारो बणयोङो है उण में आ मूरत थाप दीजै।

मूरत री थापना रै बाद थारी निजरां सदां खातर ठीक हुय जावैला। म्हैं थनै मूरत बणावण सारू इण खातर चुण्यौ है कै थारी निजरां पवितर है।

बन्ना खाती इण भांत करणीजी सूं दिव्य निजर लेय’र वांरै देव सरूप रौ दरसण करयौ अर पीळे रंग रै संगमरमरी भाटे सूं वांरी मूरत बणायी। मूरत में करणीजी रौ मूंडो लांबो बतायो गयो है, माथै पर मुगट है, कानां मांय कुंडळ अर जीवणै हाथ मांय त्रिसूळ है, डांव हाथ मांय अेक नरमुण्ड लटक रैयो है अर गळै मांय गैणा है।

इण बिचाळै मूरत बणवाया पछै माताजी पाछा देसनोक आयग्या अर विक्रमी संवत 1595 री चैत सुदी एकम नै देसनोक सूं गढजातरा अर गङियालै नांव रै गांवां रै बिचाळै बण्यौङी धनेरू तळाब कांनी रवानगी लीनी।सागै उणां रौ बेटो पुस्पराज हौ। नौवमी रै दिन अे लोग तळाब पूग्या।

तळाब सूं थोङी दूर पैली इ वां रथ रूकाय दियौ अर आपरै बेटे नै कैयौ कै सिनान करसूं। रथ मांय जिका मटका पङया हा उणां में पाणी नहीं हौ जद करणीजी ’पुष्पराज’ नै कैयौ कै तळाब सूं भरल्या। ’पुष्पराज’ रै गया पाछे करणीजी अेक गुमास्ते नै पूछयौ किणी भी मटके में थोङो’क पाणी है कांई। गुमास्तो बतायौ अेक घङे में पाणी है।

करणीजी आपरै सरीर माथै पाणी ढोळण सारू गुमास्ते नै कैयो। इण रै बाद माताजी करणीजी आसन लगाय’र बैठग्या अर सूरज भगवान सांमी देखण लाग्या। ज्यूं ही मटके मांय सूं पाणी रा टोपा उणा रै माथै पङ्या, अेक दिव्य जोत परगट र्हुइ अर माताजी उण जोत मांय समायग्या। बेटो पाणी लेय’र आयौ जद गुमास्तौ वांनै सगळी बात बताई।

आकासवाणी हुयी कै थे लोग पाछा देसणोक चल्या जावौ, वठै अेक आंधो खाती बन्नो मिळैला उणरै कनै म्हारी मूरत हुवैला। उण मूरत नै म्हारी बणायोङी गुफा मांय थरप दीजौ। इण भांत करणीजी आपरै अवतार रूप रो कारज पूरौ कर’र दिव्य जोत मांय समायग्या।

आज देसनोक मांय जठै पक्को मिंदर बण्यौङो है वठै गुम्भारियै मांय माताजी री आ मूरत थरपिजयौङी है। मूरत सिंदूर सूं ढक्यौङी रैवै इण कारण पूरा दरसण नहीं हुय सकै। आ मूरत धरती सूं चार-पांच आंगळ इ ऊंची है अर इण रै आगे-लारै काबा (ऊन्दरा) घूमता रैवै।

कैई धोळै रंग रा काबा माताजी री जोत कनै घूमता रेवै अर भागीजन नै इ’ज वांरा दरसण हुवै। कालान्तर मांय बीकानेर रा नरेस सूरजसिंहजी माताजी री गुफा नै पक्की बणवाई अर पछै महाराजा गंगासिंहजीइण जागां धोळै संगमरम री भाठ रो मिंदर बणवाय दियौ।

मानख देह अवतार मांय करणीजी 151 बरस बिताया अर आपरौ सगळो जीवण लोक कल्याण रै कामां
में लगाय दियौ। करणीजी रै चमत्कारां री गिणती कोनी, जितरा मूंडा चमत्कार। चमत्कारां सूं इ’ज आतताइयां
रौ वध करयौ, गायां री रिक्षा करी, पीङितां रौ भलौ करयौ।

करणीजी वनप्रेमी, दलितउधारक, न्याय करणवाळा
लोक देवी हैं। राजस्थान रै अलावा सगळे हिन्दुस्तान में उणा री ख्याति है। करणीजी री भगती में अणगिणत
रचनावां लिखीज्यौङी है, जिकां में करणीजी रै चमत्कारां रो, उणा रै दिव्य रूप रौ, उणा रै विकराळ रूप रौ अर
उणा रै लोक देवी रूप रौ वरणन करयोङो है।

अठै रै जनमानस में सदां सूं इ ‘करनी हर करतार, जुदा कदै
न जाणियै’ री भावना हिवङे मांय बस्यौङी है। ओ लोक विस्वास है कै भलाई अङसठ तीरथां री जातरा करल्यौ,
पण वै देसणोक दरसण करियां सै अधूरी है। इण बाबत अेक दूहो कैही जैः-

परसै पुसकर प्रथम, जकै कवि गंगा जावै।
गया न्हाय गोमी, अवसर रामेसर आवै।
परसे बदरी पछै, हाड गाळै हेमाळै।
मथुरा कासी मांह उदक दे तपत ऊनाळै।
एतळा तीरथ करतां अबस, जकै पाप नह जाणरा।
दट जाय पाप करतां दरस, देसनोक दीवाण रा।।

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