तैलप द्वितीय कल्याणी के चालुक्य वंश का शासक था
कल्याणी के चालुक्यों का स्वतंत्र राजनैतिक इतिहास तैल अथवा तैलप द्वितीय (973-997ई.) के समय से प्रारंभ होता है। उसके पूर्व हमें कीर्त्तिवर्मा तृतीय, तैल प्रथम, विक्रमादित्य तृतीय, भीमराज, अय्यण प्रथम तथा विक्रमादित्य चतुर्थ के नाम मिलते हैं। इनमें क्रमशः तैलप प्रथम, अय्यण प्रथम तथा विक्रमादित्य चतुर्थ के विषय में ज्यादा जानकारी प्राप्त नहीं हो पाई है। ये सभी राष्ट्रकूटों के सामंत थे। निलगुंड लेख से पता चलता है, कि अय्यण ने राष्ट्रकूट नरेश कृष्ण द्वितीय की कन्या से विवाह कर दहेज में विपुल संपत्ति प्राप्त कर ली थी।उसके (अय्यण) पुत्र विक्रमादित्य चतुर्थ का विवाह कलचुरि राजा लक्ष्मणसेन की कन्या बोन्थादेवी के साथ संपन्न हुआ था। इसी से तैलप द्वितीय का जन्म हुआ। नीलकंठ शास्त्री का विचार है, कि ये सभी शासक बीजापुर तथा उसके समीपवर्ती क्षेत्र में शासन करते थे, जो इश वंश की मूल राजधानी के पास में था।
तैलप द्वितीय विक्रमादित्य चतुर्थ तथा बोन्थादेवी से उत्पन्न हुआ था। पहले वह राष्ट्रकूट शासक कृष्ण तृतीय की अधीनता में बीजापुर में शासन कर रहा था। धीरे-धीरे उसने अपनी शक्ति का विस्तार करना प्रारंभ किया। कृष्ण तृतीय के उत्तराधिकारियों खोट्टिग तथा कर्क द्वितीय के समय में राष्ट्रकूट वंश की स्थिति अत्यन्त कमजोर पङ गयी। महत्वाकांक्षी तैलप ने इसका लाभ उठाया। 973-74 ई. में उसने राष्ट्रकूटों की राजधानी मान्यखेत पर आक्रमण कर दिया। युद्ध में कर्क मारा गया तथा राष्ट्रकूट राज्य पर तैलप का अधिकार हो गया। उसकी इस सफलता का उल्लेख खारेपाटन अभिलेख में मिलता है। इसके बाद तैलप ने भूतिगदेव को आहवमल्ल की उपाधि प्रदान की। वेलारी लेखों से नोलम्ब पल्लव के ऊपर उसका पूर्ण अधिकार हो गया था। बनवासी क्षेत्र में सर्वप्रथम कन्नप तथा फिर उसके भाई सोभन रस ने तैलप की अधीनता स्वीकार की। बेलगाँव जिले में सान्दत्ति के रट्ट भी उसके अधीन हो गये। उसने दक्षिणी कोंकण प्रदेश की भी विजय की। यहाँ शिलाहार वंश का शासन था। दक्षिणी कोंकण के अवसर तृतीय अथवा उसके पुत्र रट्ट को तैलप ने अपने अधीन कर लिया।सेउण के यादववंशी शासक भिल्लम द्वितीय ने भी तैलप की प्रभुसत्ता स्वीकार की। उसके सेनापति वारप ने लाट प्रदेश को जीता। इस प्रकार तैलप ने गुजरात के अलावा शेष सभी भागों पर अपना अधिकार जमा लिया, जो पहले राष्ट्रकूटों के स्वामित्व में थे।
चोलों से युद्ध
राष्ट्रकूट प्रदेशों पर अधिकार करने के बाद तैलप ने चोलों तथा परमारों से संघर्ष किया। एक लेख में उसे चोल रूपी शैल के लिये इन्द्र के विज्र के समान बताया गया है। राष्ट्रकूटों से चोलों की पुरानी शत्रुता थी। तैलप भी सामंत के रूप में चोलों के विरुद्ध लङ चुका था। अतः स्वतंत्र राजा होने के बाद वह चोलों का स्वाभाविक शत्रु बन गया। 980 ई. के लगभग उसने चोल शासक उत्तम चोल को पराजित कर दिया। उत्तम चोल के बाद राजराज प्रथम चोलवंश का शक्तिशाली राजा बना। उसने अपनी शक्ति का विस्तार करते हुये गंगवाडि तथा नोलंमवाडि को जीत लिया। ये प्रदेश पहले राष्ट्रकूटों के अधिकार में थे। अतः तैलप इन पर अपना पैतृक अधिकार समझता था। तैलप को राजराज से भी संघर्ष करना पङा। कोगलि लेख जो बेलारी जिले में स्थित है, से पता चलता है, कि आहवमल्ल ने चोल नरेश को युद्ध में पराजित कर उसके 150 हाथियों को छीन लिया था। चूँकि इस संबंध में चोल साक्ष्य मौन हैं, अतः हम निष्कर्ष निकाल सकते हैं, कि तैलप ने राजराज को भी किसी युद्ध में पराजित किया होगा।
मालवा के परमारों से युद्ध
चोलों के बाद तैलप का मालवा के परमार वंश के साथ संघर्ष छिङ गया था। उसका समकालीन परमार वंश का शासक मुंज था। इस संघर्ष का उल्लेख साहित्य तथा लेखों में मिलता है। मेरुतुंग कृत प्रबंधचिंतामणि से पता चलता है, कि तैलप ने मुंज के ऊपर छः बार आक्रमण किया। जब उसके मंत्री रुद्रादित्य को इसके विषय में पता चला तो उसने आग में कूद कर आत्महत्या कर ली, क्योंकि उसने मुंज को गोदावरी पार न करने की सलाह दे रखी थी। इस बार मुंज पराजित हुआ तथा बंदी बना लिया गया। बताया गया है, कि कारागार में उसकी निगरानी के लिये तैल की अधेङ उम्र की विधवा बहन मृणालवती को रखा गया था। मुंज उससे प्रेम करने लगा था। उसने कारागार से निकल भागने की गुप्त योजना तैयार की और इसे मृणालवती को बता दिया। किन्तु उसने मुंज के साथ छळ किया तथा उसकी योजना का रहस्योद्घाटन कर दिया। फलस्वरूप मुंज को कारागार में कठोर यातनायें देने के बाद तैलप ने उसका सिर काट दिया। कैथोम ताम्रपत्रों में भी इस घटना का उल्लेख मिलता है। इनके अनुसार तैल ने उत्पल (मुंज) को, जिसने हूणों, मारवों तथा चेदियों के विरुद्ध सफलता प्राप्त की थी, बंदी बना लिया था। गडग लेख से सूचना मिलती है, कि तैल ने वीर मुंज को तलवार से मौत के घाट उतार दिया था। इसी प्रकार यादव भिल्लम द्वितीय के सोमगनेर दानपत्र से पता चलता है, कि उसने तैल की ओर से मुंज के विरुद्ध युद्ध किया था। इसके अनुसार भिल्लम ने युद्ध क्षेत्र में लक्ष्मी को प्रताङित किया, क्योंकि उसने महाराजा मुंज का साथ दिया था तथा उसे रणरंगभीम की साध्वी पत्नी बनने पर मजबूर कर दिया। यहाँ रणरंगभीम, आहवमल्ल का समानार्थी है, जो तैल द्वितीय का ही ना था। इन विवरणों से पता चलता है, कि तैलप ने युद्ध क्षेत्र में परमार नरेश मुंज को पराजित कर उसकी हत्या कर दी।
इस प्रकार तैलप एक महान शक्तिशाली शासक था। इसने चालुक्य वंश की प्रतिष्ठा को पुनः स्थापित कर दिया था। तैलप महान विद्वानों का संरक्षक भी था, उसने कन्नङ भाषा की उन्नति में अपना भरपूर सहयोग भी दिया था।
References : 1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव 2. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास, लेखक- वी.डी.महाजन
