इतिहासत्रिपुरी का कलचुरि राजवंशप्राचीन भारत

त्रिपुरी डाहल के कलचुरि वंश के शासक लक्ष्मणराज का इतिहास

कलचुरि वंश के शासक युवराज प्रथम के बाद उसका पुत्र लक्ष्मणराज शासक बना। वह एक शक्तिशाली शासक था, जिसने कलचुरि साम्राज्य का विस्तार किया था।

युवराज प्रथम का त्रिपुरी के कलचुरि वंश के इतिहास में योगदान

बिल्हारी तथा गोहरवा के लेखों से लक्ष्मणराज की विजयों के बारे में पता चलता है।

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बिल्हारी लेख के अनुसार लक्ष्मणराज ने कोशलराज को जीतते हुये आगे बढकर उङीसा के राजा से रत्न और स्वर्ण से जटिल कलिय (नाग) की प्रतिभा प्राप्त की। इससे उसने सोमनाथ की पूजा की। इसी प्रकार बिल्हारी लेख में कहा गया है, कि उसने बंगाल के राजा को पराजित किया, पाण्ड्यराज को हराया, लाट के राजा को लूटा, गुर्जरनरेश को जीता तथा कश्मीर के राजा ने मस्तक झुकाकर उसके चरणों की पूजा की।

बंगाल का इतिहास

कश्मीर का इतिहास

इन लेखों का विवरण प्रशस्ति के प्रकार का है, जिसमें अतिरंजना का पुट मिलता है। फिर भी कुछ ऐतिहासिक तथ्य निहित हैं। उसका सोमनाथ अभियान सही प्रतीत होता है। 10 वीं शता. के द्वितीयार्ध में गुर्जर तथा लाट भारी अव्यवस्था के शिकार थे। लाट प्रदेश पर राष्ट्रकूटों के सामंत शिलाहार वंश तथा उत्तरी गुजरात पर कन्नौज के प्रतिहारों का अधिकार था। इन दोनों शक्तियों के पतन के दिनों में इन प्रदेशों से होते हुये सोमनाथ तक सफल अभियान किया होगा। कोशल से तात्पर्य दक्षिण कोशल से है। यहाँ संभवतः उङीसा के सोमवंशी राजा राज्य करते थे। जहाँ तक बंगाल का प्रश्न है, हमें पता है कि 10 वीं शता. के द्वितियार्ध से वहाँ शासन करने वाले पालवंश की स्थिति निर्बल पङ गयी थी। 11वीं शता. के प्रथमार्ध में कलचुरि बंगाल के शासकों के घनिष्ठ संपर्क में थे। संभव है, इसी का लाभ उठाते हुये लक्ष्मणराज ने वहाँ सैनिक अभियान कर सफलता प्राप्त की हो। यहाँ तक हम कुछ ठोस आधार पर हैं, लेकिन जहाँ तक कश्मीर तथा पाण्ड्य राज्य की विजय का प्रश्न है, यह शुद्ध रूप से काव्यात्मक प्रतीत होता है।

राष्ट्रकूट शासकों का इतिहास में योगदान

प्रतिहारों का इतिहास में योगदान

पाल शासकों का इतिहास में योगदान

लक्ष्मणराज ने अपनी पुत्री का विवाह चालुक्य नरेश विक्रमादित्य चतुर्थ के साथ किया था। अपने पिता के समान लक्ष्मणराज भी शैव मत का पोषक था। तथा शैव संतों को संरक्षण प्रदान किया तथा ह्रदयशिव के लिये बहुमूल्य उपहारों सहित वैद्यनाथ मठ का दान दिया। उसका प्रधान सचिव सोमेश्वर था, जिसने वष्णु का एक मंदिर बनवाया था।

लक्ष्मणराज के बाद उसका पुत्र शंकरगण तृतीय राजा बना। उसके बाद उसका छोटा भाई युवराज द्वितीय राजा बना। गोहरवा लेख में उसे चेदीन्द्रचंद्र अर्थात् चेदिवंश के राजाओं में चंद्र कहा गया है। उसने सोमेश्वर की उपाधि धारण की। किन्तु सैनिक दृष्टि से वह निर्बल शासक था, जिसे वेंगी के चालुक्य नरेश तैल द्वितीय तथा परमार नरेश मुंज ने पराजित किया था।

परमार शासकों का राजनैतिक इतिहास

त्रिपुरी पर मुंज ने कुछ समय तक अधिकार बनाये रखा। उसके हटने के बाद मंत्रियों ने युवराज द्वितीय को हटाकर उसके पुत्र कोक्कल द्वितीय को राजा बना दिया। उसके समय में कलचुरियों ने अपनी शक्ति एवं मर्यादा को पुनः प्राप्त कर लिया। कोक्कल द्वितीय ने गुर्जरनरेश (गुजरात) पर आक्रमण कर चौलुक्य नरेश चामुण्डराज को पराजित किया। उसने कुंतल तथा गौङ शासकों के विरुद्ध भी सफलता प्राप्त की। उसने 1019 ईस्वी तक राज्य किया।

References :
1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव
2. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास, लेखक-  वी.डी.महाजन 

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