इतिहासकल्याणी का चालुक्य वंशदक्षिण भारतप्राचीन भारतबादामी का चालुक्य वंशवेंगी के चालुक्य

चालुक्यों के काल में कला और स्थापत्य कला : बादामी,ऐहोल,पत्तडकल

चालुक्य शासन में कला और स्थापत्य के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति हुई। इस समय जैनों तथा बौद्धों के अनुकरण पर हिन्दू देवताओं के लिये पर्वत-गुफाओं को काटकर मंदिर बनवाये गये। चालुक्य मंदिरों के उत्कृष्ट नमूने बादामी, ऐहोल तथा पत्तडकल से प्राप्त होते हैं।

बादामी

बादामी में पाषाण को काटकर चार स्तंभयुक्त मंडप बनाये गये हैं। इनमें से तीन हिन्दू तथा एक जैन धर्म संबंधित है। प्रत्येक में स्तंभ युक्त बरामदा, मेहराब युक्त हाल तथा एक छोटा वर्गाकार गर्भगृह, पाषाण में गहराई से काटकर बनाये गये हैं। इनमें से एक बैष्णव गुहा है, जिनके बरामदे में विष्णु की दो रिपीफ मूर्तियाँ – एक अनंत पर बैठी हुई तथा दूसरी नरसिंह रूप की – प्राप्त होती हैं।इन गुफाओं की वास्तु तथा उकेरी अत्यंत उच्चकोटि की है। प्रत्येक चबूतरे पर उङते हुये गणों के विभिन्न मुद्राओं में उत्कीर्ण चित्र अत्यन्त उल्लेखनीय हैं। दूसरी शैलगुफा है, जिसे मालेगिट्टी कहा जाता है। इसका गर्भगृह वर्गाकार है। मंडप तथा बरामदे में एकाश्मक स्तंभ लगे हैं,जो मूर्ति शिल्प, कोनियों तथा कारनिस अभिप्राय से सजाये गये हैं। गुफा मंदिरों का बाहरी भाग तो सादा है, किन्तु भीतरी दीवारों पर विभिन्न प्रकार की सुन्दर-सुन्दर चित्रकारियाँ प्राप्त होती हैं।

ऐहोल

ऐहोल को मंदिरों का नगर कहा जाता है और यहाँ कम से कम 70 मंदिरों के अवशेष प्राप्त होते हैं। इनका निर्माण 450-600 ई. के बीच हुआ। इसी समय उत्तरी भारत में गुप्त मंदिरों का निर्माण हुआ तथा आर्य शिखर शैली (नागर) का प्रभाव दक्षिण में पहुँचा। यही कारण है, कि ऐहोल के मंदिरों में नागर तथा द्रविङ शैलियों का मिश्रण मिलता है। अधिकांश मंदिर विष्णु तथा शिव के हैं। ऐहोल का विष्णु मंदिर अभी तक सुरक्षित अवस्था में है।

यहाँ के हिन्दू गुहा-मंदिरों में सबसे सुंदर सूर्य का एक मंदिर है, जो लाढ खाँ के नाम से प्रसिद्ध है। यह 50 वर्ग फीट में बना है, तथा इसकी छत चिपटी है। छत में एक छोटा वर्गाकार गर्भ-गृह तथा द्वारमंडप बने हुये हैं। मंदिर पश्चिम, उत्तर तथा दक्षिण में दीवारों से घिरा हुआ है। पूर्व में स्तंभयुक्त खुला बरामदा है। गर्भगृह पिछली दीवार से जुङा हुआ है। गर्भ-गृह के सामने स्तंभों पर टिका हुआ बरामदा तथा एक विशाल सभा-कक्ष है। छत बङे पत्थरों से बनाई गयी है।इस मंदिर में शिखर नहीं है। पर्सी ब्राउन का विचार है, कि मूलतः यह विशाल सभामंडप रहा होगा, जिसे बाद में मंदिर का रूप दे दिया गया। मंदिर के बीच में नंदी की विशाल मूर्ति स्थापित है, किन्तु अन्य भाग वैष्णव लक्षणों से युक्त है।

लाढ खाँ मंदिर से भिन्न दुर्गा का मंदिर है। इसका निर्माण लाढखां के एक शती बाद हुआ। इस मंदिर का निर्माण एक ऊँचे चबूतरे पर किया गया है। तथा इसकी चिपटी छत जमीन से 30 फीट ऊँची है। गर्भगृह के ऊपर एक शिखर है तथा बरामदे में प्रदक्षिणापथ बनाया गया है। बाहरी स्तंभों में अनेक पर देवमूर्तियाँ बनी हुई हैं। अधिष्ठान तथा स्तंभों के अलंकरण द्रविङ शैली के अलंकरण द्रविङ शैली जैसे हैं। इस प्रकार नागर शैली के शिखर तथा द्रविङ वास्तु के विविध तत्वों से बना यह मंदिर उत्तर तथा दक्षिण की वास्तुकला के समन्वय का अनुपम उदाहरण प्रस्तुत करता है। मूर्तिकारी की दृष्टि से यह लाढखां से अधिक सुन्दर है।

ऐहोल का हच्चीमल्लीगुड्डी मंदिर अधिकांश दुर्ग मंदिर के ही समान हैं, लेकिन यह छोटे आकार का है। इसके गर्भगृह तथा मंडप के बीच बना हुआ अन्तराल इसकी नवीन विशेषता है।

ऐहोल के सबसे बाद का मंदिर मेगुती जैन मंदिर है, जिसे रविकीर्ति द्वारा 634 ई. में बनवाया गया। इसका निर्माण एक अलंकृत अधिष्ठान पर हुआ है, जिसमें गर्भगृह, स्तंभयुक्त मंडप तथा अन्तराल हैं। स्तंभों के शीर्षभार का अलंकरण काफी सुन्दर है। यह द्रविङ शैली का मंदिर है। इसे भूमि से सीधे ऊपर ढाँचा खङा कर बनाया गया है। मंदिर के प्रवेश के लिये मुखमंडप बनाया गया है।इसकी रचना अधूरी रह गयी है।

पत्तडकल

बादामी तथा ऐहोल के मंदिरों के अलावा पत्तडकल में भी चालुक्य मंदिरों के सुन्दर नमूने मिलते हैं, यहां दस मंदिर प्राप्त होते हैं, जिनमें चार उत्तरी (नागर) तथा छः दक्षिणी (द्रविङ) शैली में बने हैं। इनका विवरण इस प्रकार हैं-

  • उत्तर(नागर) शैली के मंदिर- पापनाथ, जंबू, लिंग, कर सिद्धेश्वर तथा काळी विश्वनाथ।
  • दक्षिणी (द्रविङ) शैली के मंदिर – संगमेश्वर, विरुपाक्ष, मल्लिकार्जुन, गल्पनाथ, सुमेश्वर तथा जैन मंदिर।

उत्तरी शैली में बना पापनाथ का मंदिर तथा दक्षिणी शैली में बने विरूपाक्ष तथा संगमेश्वर मंदिर विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।

इनमें उत्तरी शैली में बना पापनाथ का मंदिर तथा दक्षिणी शैली में बने विरूपाक्ष तथा संगमेश्वर मंदिर विशेष रूप से उल्लेखनीय है। नागर-द्रविङ शैलियों शैलियों का प्रयोगात्मक प्रयोग सर्वप्रथम पापनाथ मंदिर में ही देखने को मिलता है। इस मंदिर का निर्माण ऊँचाई पर एक चौकी पर किया गया है।इसके चारों ओर घेरते हुये ऊँची स्तंभयुक्त दीवार बनाई गयी है। इसमें कार्निसें बनी हैं। मंदिर में गर्भगृह, अन्तराल, मंडप तथा मुखमंडप है। प्रदक्षिणापथ द्रविङ शैली में बना है. मंदिर की दीवारें मोटी तथा भारी-भरकम हैं। इसका अन्तराल काफी विस्तृत है। छत समपाट है तथा पूर्व में छोटे आकार का शिखर नागर शैली में बना है। इसके हर तीसरे मोङ पर आमलक बैठाये गये हैं। किन्तु विशालता के बावजूद इस मंदिर की योजना उन्नत नहीं है।

द्रविङ शैली के मंदिरों में संगमेश्वर तथा विरुपाक्ष उल्लेखनीय है। संगमेश्वर को विजयादित्य (696-733ई.) के समय में बनवाया गया था। इसकी योजना वर्गाकार है तथा इसमें खुला हुआ मंडप है। विमान पल्लव मंदिरों के विमान से मिलता-जुलता है। इसके अर्धस्तंभों के दोनों सिरों पर गर्भगृह के दोनों तरफ दुर्गा तथा गणेश के मंदिर बने हुये हैं।

पत्तडकल के सभी मंदिरों में विरूपाक्ष का मंदिर सर्वाधिक सुन्दर तथा आकर्षक है। इसका निर्माण विक्रमादित्य द्वितीय की एक रानी ने 740 ई. के लगभग करवाया था तथा इसके निर्माता वास्तुकार गण्ड को त्रिभुवनाचार्य की उपाधि से विभूषित किया गया था। मंदिर प्राकार से घिरे एक विशाल प्रांगण में स्थित है, जिसमें 16 छोटे मंदिर भी हैं। इसमें गोपुरम् भी बना है। चालुकय् काल में सर्वप्रथम इसी मंदिर में गोपुरम् मिलता है। मंदिर का विमान चार तल्ला है। शिखर के ऊपर कलश स्थित है। मंडप तथा प्रदक्षिणापथ कांची के कैलाशनाथ मंदिर की योजना पर बनाये गये हैं।मंदिर के सामने नंदि-मंडप बना है।इसके चारों ओर वेदिका तथा एक तोरणद्वार है. मंदिर की बाहरी दीवार में स्तंभ जोङकर सुंदर ताख बनाये गये हैं, जिनमें मूर्तियाँ रखी हुई हैं। ये शिव, नाग, नागिन तथा रामायण से लिये गये हैं। मंदिर के सामने नंदि-मंडप बना है। इसके चारों ओर वेदिका तथा रामायण से लिये गये दृश्यों का प्रतिनिधित्व करती हैं। विख्यात कलाविद् पर्सी ब्राउन के शब्दों में विरूपाक्ष मंदिर प्राचीन काल की उन दुर्लभ इमारतों में से एक है, जिनमें उन मनुष्यों की भावना अब भी टिकी हुई है, जिन्होंने इसकी कल्पना की तथा अपने हाथों से निर्मित किया। इसके निर्माता कलाकार का नाम श्रीगुण्डन अनिवारिताचारी मिलता है, जो नगर योजना तैयार कने , राजमहलों, गाङियों, पलंगों आदि का निर्माण करने में अत्यंत निपुण था। उसे चालुक्य सम्राट ने तेंकानादिशेय सूत्राधिकारी (दक्षिण भारत का वास्तुविद्) की उपाधि से सम्मानित किया था। मंदिर की दीवारों पर उत्खनित रामायण के दृश्यों का शिल्पी वही था।

विरुपाक्ष मंदिर पर पल्लव शैली का प्रभाव सुस्पष्ट है। मंदिर में उत्कीर्ण एक लेख में कहा गया है, कि इसका निर्माण विक्रमादित्य द्वितीय द्वारा पल्लवों पर तीन बार विजय पाने की स्मृति में उसकी पत्नी द्वारा बनवाया गया था। संभव है, विक्रमादित्य अपने साथ कांची से कुछ निपुण वास्तुकारों को अपनी राजधानी लाया हो तथा उन्हीं के सहयोग से विरुपाक्ष मंदिर बनवाया गया हो।

वास्तुकला के साथ-साथ चालुक्य काल में मूर्तिकला का भी विकास हुआ। मूर्तियों पर गुप्त तथा पल्लव शैली का प्रभाव दिखाई देता है। अधिकांश मूर्तियों का निर्माण मंदिरों को सजाने के लिये किया गया है। गुफा स्तंभों तथा छतों पर बङी संख्या में मूर्तियां चित्रित की गयी हैं। इनमें पौराणिक कथायें हैं। बादामी की गुफा संख्या-1 में नटराज शिव की 16 भिन्न-भिन्न मुद्राओं में मूर्ति उकेरी गयी हैं, जो काफी सुंदर हैं। महिषमर्दिनी, अर्धनारीश्वर, हरिहर आदि की मूर्तियां भी मिलती हैं। इनके अलावा गजलक्ष्मी, पार्वती, मनुष्य, काल्पनिक पशु आदि भी बनाये गये हैं। दूसरी तथा तीसरी गुफाओं में भी मनोहर अंकन मिलते हैं। विष्णु के विविध अवतारी रूपों को कलात्मक ढंग से प्रदर्शित किया गया है। ऐहोल तथा पत्तडकल मंदिरों में भी मूर्ति शिल्प की अधिकता है। कुछ पर वेंगी शैली का भी प्रभाव है। संगमेश्वर मंदिर में विष्णु,शिव आदि की मूर्तियाँ मिलती हैं। विरुपाक्ष मंदिर का मूर्ति शिल्प अद्वितीय है। यहाँ शिव, ब्रह्मा तथा विष्णु की मूर्तियाँ अत्यंत सुन्दर एवं कलात्मक ढंग से बनाई गयी हैं। रामायण के दृश्यों का भी मनोहर अंकन हुआ है। मल्लिकार्जुन मंदिर में कृष्ण लीला से संबंधी अंकन है।

अजंता तथा एलोरा दोनों ही चालुक्यों के राज्य में विद्यामन थे। संभवतः यहाँ की कुछ गुफायें इसी काल की है। अजंता के एक गुहाचित्र में पुलकेशिन द्वितीय को संभवतः फारसी दूत-मंडप का स्वागत करते हुये दिखाया गया है। बादामी गुहा मंडपों में भी चित्रकारियाँ प्राप्त होती है, जिनमें अजंता शैली का अनुपालन किया गया है।

References :
1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव 

India Old Days : Search

Search For IndiaOldDays only

  

Related Articles

error: Content is protected !!