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कांची के पल्लव नरेस परमेश्वरवर्मन प्रथम का इतिहास

कांची के पल्लव शासक महेन्द्रवर्मन द्वितीय का पुत्र तथा उत्तराधिकारी परमेश्वरवर्मन प्रथम था। इसने 670-700ई. तक राज्य किया था। इसके समय में पल्लव-चालुक्य संघर्ष पुनः छिङ गया था।

गहङवाल दानपत्र से पता चलता है, कि चालुक्य शासक विक्रमादित्य ने उसके राज्य पर आक्रमण किया तथा वह कांची के समीप जा पहुँचा। परमेश्वरवर्मन प्रथम ने भागकर अपनी जान बचाई। विक्रमादित्य उसका पीछा करता हुआ कावेरी नदी तक जा पहुँचा तथा वहाँ उरैयूर नामक स्थान में अपना सैनिक सिविर लगाया। परंतु परमेश्वरवर्मन ने हिम्मत नहीं हारी। उसने एक बङी सेना तैयार कर विक्रमादित्य के सहायक गंगनरेश भूविक्रम से विलंदे में युद्ध किया, किन्तु वह हार गया। अपना इस असफलता का से भी वह निराश नहीं हुआ। उसने अपने शत्रु का ध्यान बँटाने के लिये एक सेना चालुक्य राज्य पर आक्रमण करने के लिये भेजी तथा अतुल संपत्ति लेकर लौटी। अंत में चालुक्य नरेश पल्लव राज्य को छोङकर अपनी राजधानी लौटने के लिये बाध्य हुआ। उसकी इस विजय का उल्लेख कूरम के लेख में मिलता है, जिसके अनुसार परमेश्वरवर्मन ने विक्रमादित्य को, जिसकी सेना में लाखों सैनिक थे, केवल अकेले एक जर्जर वस्त्र पहने युद्ध भूमि से भागने के लिये बाध्य कर दिया।

कुछ अन्य लेखों में कहा गया है, कि उसने पेरूबलनल्लूर के युद्ध में बल्लभ को पराजित किया, रणरसिक की सेना के पंक को सुखा दिया तथा उसकी नगरी का मर्दन कर दिया। यहाँ बल्लभ से तात्पर्य बादामी से है। इस प्रकार परमेश्वरवर्मन ने पुनः अपनी स्थिति सुदृढ कर ली थी।

परमेश्वरवर्मन शैवमतानुयायी था। उसने लोकादित्य, एकमल्ल, रणंजय, अत्यन्तकाम, उग्रदंड, गुणभाजन आदि उपाधियां ग्रहण की थी। वह एक निर्माता भी था तथा उसने मामल्लपुरम् में गणेश मंदिर का निर्माण करवाया था। वह विद्या-प्रेमी भी था, जिसने विद्याविनीत की उपाधि ली थी।

References :
1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव 

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