प्राचीन इतिहास तथा संस्कृति के प्रमुख स्थल प्रतिष्ठान
महाराष्ट्र के औरंगाबाद से 35 मील दक्षिण की ओर स्थित प्रतिष्ठान नामक नगर प्राचीन भारत का महत्वपूर्ण व्यापारिक एवं सांस्कृतिक केन्द्र रहा है। गोदावरी सरिता के उत्तरी तट पर स्थित इस नगर के रूप में मिलता संस्थापक पुराणों के अनुसार ब्रह्म थे। बौद्ध साहित्य में इसका वर्णन एक प्रसिद्ध व्यापारिक केन्द्र के रूप में मिलता है। सातवाहन युग में यह नगर अत्यन्त महत्वपूर्ण था।
यूनानी तथा रोमन लेखकों ने इसके नाम का उल्लेख किया है। एरियन इसे ‘प्लीथान’, टालमी ‘बैथन’ तथा पेरीप्लस के लेखक ने ‘पैथान’ या ‘पीथान’ नाम से संबोधित किया है। टालमी ने इसे पुलुमावी की राजधानी बताता है। सातवाहनों के अनेक लेख तथा सिक्के प्रतिष्ठान और उसके समीपवर्ती क्षेत्र से मिलते है। इस आधार पर अधिकांश विद्वान् उसका आदि-स्थान प्रतिष्ठान ही मानते है।
प्रथम शती के अन्त में सातवाहनों ने अपने साम्राज्य के पश्चिमी भाग को सुरक्षित रखने के लिए अपनी एक राजधानी प्रतिष्ठान अथवा पैठन में स्थापित कर लिया। इससे यह नगर अत्यत प्रसिद्ध हो गया। यह दक्षिणापथ का मुख्य व्यापारिक केन्द्र था। सातवाहन काल में प्रसिद्ध बन्दरगाह सड़कों द्वारा इस नगर से जुड़े हुए थे। यहाँ धनाढ्य श्रेष्ठि निवास करते थे।
प्रथम शता. के रोमन लेखक प्लिनी ने प्रतिष्ठान को आन्ध्रदेश का अत्यन्त समृद्धशाली नगर बताते हुए इसकी प्रशंसा की है। प्रतिष्ठान से एक व्यापारिक मार्ग श्रावस्ती तक जाता है जिस पर माहिष्मती, उज्जयिनी, विदिशा, कौशाम्बी आदि नगर स्थित थे।
पेरिप्लस से पता चलता है कि यहाँ से चार पहिया वाली गाड़ियों में व्यापारिक वस्तुयें भड़ौच में भेजी जाती थी। इस प्रकार यूनानी-रोमन लेखकों के विवरण से स्पष्ट हो जाता है कि प्रतिष्ठान दक्षिणपथ की प्रमुख व्यापारिक मण्डी थी।
प्रतिष्ठान से मिट्टी की मूर्तियाँ, हाथीदाँत तथा शंख की वस्तुयें, माला की गुरियाँ, मकानों के खण्डहर आदि खुदाई में प्राप्त कियें गये हैं।
References : 1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव
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