प्राचीन भारतइतिहाससातवाहन वंश

सातवाहन युगीन संस्कृतिःशासन व्यवस्था

सातवाहन राजाओं ने मौर्य नरेशों के आदर्श पर ही अपने शासन का संगठन किया। शासन का स्वरूप राजतंत्रात्मक ही था। सम्राट प्रशासन का सर्वोच्च अधिकारी था। वह अपनी दैवी उत्पत्ति में विश्वास करता था। नासिक लेख में गौतमीपुत्र शातकर्णी की तुलना कई देवताओं से की गयी है।

नासिक गुहा अभिलेख किस शासक का है?

सातवहान नरेश राजन्, राजराज, महाराज तथा शकों के अनुकरण पर स्वामिन् जैसी उपाधियाँ धारण करते थे। रानियाँ देवी अथवा महादेवी की उपाधि धारण करती थी। यद्यपि राजाओं के नाम मातृ-प्रधान हैं, तथापि ऐसा प्रतीत होता है कि उत्तराधिकार पुरुष वर्ग में ही सीमित था, तथा वंशानुगत होता था। कभी-2 राजा की मृत्यु के बाद यदि उसका पुत्र अवयस्क होता था, तो उसके भाई को राज-पद दे दिया जाता था। इस काल की दो रानियों – नागानिका (शातकर्णी प्रथम की रानी), तथा गौतमीबलश्री (गौतमीपुत्र शातकर्णी की माता) – ने प्रशासन में सक्रिय रूप से भाग लिया था।

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सम्राट की सहायता के लिये अमात्य नामक पदाधिकारियों का एक सामान्य वर्ग होता था। गौतमीपुत्र तथा उसके पुत्र पुलुमावी ने महासेनापति नामक एक उच्च पदाधिकारी की नियुक्ति की थी।संभवतः कुछ सेनापति साम्राज्य के बाह्मवर्ती प्रदेशों की देख-रेख के लिये नियुक्त होते थे। कुछ केन्द्रीय शासन के विभागों की देख-रेख किया करते थे।

स्थानीय शासन-

स्थानीय शासन अधिकांशतः सामंतों द्वारा चलाया जाता था। कार्ले तथा कन्हेरी के लेखों में महारठी तथा महाभोज का उल्लेख मिलता है। ये बङे सामंत थे तथा उन्हें अपने-2 क्षेत्रों के निमित्त सिक्के उत्कीर्ण करवाने का अधिकार था। पश्चिमी घाट के ऊपरी भाग में महारठी तथा महाभोज उत्तरी कोंकण में सामंत थे। इनका पद आनुवांशिक होता था। इन सामंतों के अधिकार अमात्यों से अधिक होते ते। तथा वे अपने अधिकार में भूमिदान कर सकते थे।

आहार-

प्रशासन की सुविधा के लिये साम्राज्य को अनेक विभागों में बाँटा गया था। जिन्हें आहार कहा जाता था। प्रत्येक आहार के अंतर्गत एक निगम (केन्द्रीय नगर) तथा कई गाँव होते थे। लेखों से गोवर्धन, सोपारा, मामल, सातवाहन आदि आहारों के विषय में सूचनायें मिलती हैं। प्रत्येक आहार का शासन एक अमात्य के अधीन होता था।जो अमात्य राजधानी में रहकर सम्राट की सेवा करते थे, उन्हें राजामात्य कहा जाता था।

ग्राम का प्रशासन-

आहार के नीचे ग्राम होते थे। प्रत्येक ग्राम का अध्यक्ष एक ग्रामिक होता था, जो ग्राम शासन के लिये उत्तरदायी था। हाल की गाथासप्तशती में ग्रामिक (ग्रामणी) का उल्लेख मिलता है। उसके अधिकार में पाँच से दस तक ग्राम होते थे।कुछ लेखों में गहपति शब्द मिलता है। यह किसानों के परिवारों का प्रमुख होता था।

नगरों का प्रशासन-

नगरों का प्रशासन निगम सभा द्वारा चलाया जाता था। लेखों में भरुकच्छ (भङौंच), सोपारा,कल्यान, पैठन, गोवर्धन, धनकटक आदि नगरों के नाम मिलते हैं। इनमें कुछ प्रसिद्ध व्यापारिक केन्द्र थे। निगम सभा में स्थानीय जनता के प्रतिनिधि रहते थे। ग्रामों तथा निगमों को स्वशासन के लिये पर्याप्त स्वतंतत्रता दी गयी थी।

अन्य अधिकारी-

सातवाहन लेखों से प्रशासन के कुछ अन्य पदाधिकारियों के नाम भी मिलते हैं- जैसे

  • भांडागारिक (कोषाध्यक्ष),
  • रज्जुक (राजस्व विभाग प्रमुख),
  • पनियघरक (नगरों में जलपूर्ति का प्रबंध करने वाला अधिकारी),
  • कार्मांतिक (भवनों के निर्माण की देख-रेख करने वाला),
  • सेनापति ।

सातवाहन शासक दयावान तथा प्रजावत्सल थे।इस प्रकार मौर्य शासकों की भाँति सातवाहन शासकों का शासन दया और उदारता से परिपूर्ण था।

Note : सातवाहन राजाओं ने ब्राह्मणों तथा श्रमणों को भूमि दान में देने की प्रथा प्रारंभ की। इस प्रकार की भूमि सभी प्रकार के करों से मुक्त होती थी।

Reference : https://www.indiaolddays.com/

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