इतिहासप्रमुख स्थलप्राचीन भारत

प्राचीन इतिहास तथा संस्कृति के प्रमुख स्थल प्रयाग

गंगा-यमुना के पवित्र संगम पर स्थित प्रयाग अतिप्राचीन समय से ही हिन्दुओं का सुप्रसिद्ध तीर्थ रहा है। धर्मग्रन्थ इसे ‘तीर्थराज’ कहते है। इसका प्रथम उल्लेख ऋग्वेद में प्राप्त होता है, जहाँ इसे पवित्र तीर्थ बताते हुए कहा गया है कि जो संगम के जल में स्नान करते है वे स्वर्ग में उच्च स्थान पाते है तथा आवागमन के चक्र से मुक्त हो जाते है। रामायण, महाभारत तथा पुराणों में इसके माहात्म्य का वर्णन है।

ऋग्वेद से संबंधित महत्त्वपूर्ण तथ्य

रामायण में इसका उल्लेख भारद्वाज आश्रम के स्थान के रूप में हुआ है जहाँ बताया गया है कि यहाँ घने वन थे। ऐसा लगता है कि रामायण तथा महाभारत के समय यहाँ कोई प्रसिद्ध नगर नहीं था। बुद्धकाल में भी यह वत्सराज्य के अन्तर्गत रहा जिसकी राजधानी कौशाम्बी में थी। मौर्य सम्राट अशोक ने अपना लेख कौशाम्बी में ही उत्कीर्ण करवाया था जिस पर बाद में समुन्द्रगुप्त ने अपनी प्रशस्ति खुदवाई। विष्णुपुराण से सूचित होता है कि प्रयाग की तीर्थ के रूप में बहुत प्रतिष्ठा थी। यहाँ स्नान-दानदि का बड़ा महत्व था।

मौर्य सम्राट अशोक की उपलब्धियां

हुएनसांग हमें बताता है कि सम्राट हर्ष ने प्रति पाँचवें वर्ष प्रयाग में ‘महामोक्ष-परिषद्’ का आयोजन करवाया तथा इस अवसर पर प्रभूत दान वितरित किया करता था। संगम के पवित्र जल में डूबकर आत्महत्या करने का उल्लेख मिलता है। धंग, गांगेयदेव, रामपाल, कुमारगुप्त(उत्तरगुप्तनरेश) ने यहीं प्राणोत्सर्ग किया था। ऐसी मान्यता थी कि यहाँ मरने वालों का स्वर्ग में पुनर्जन्म होता है।

इस प्रकार प्रयाग की प्राचीन काल में तीर्थस्थल के रूप मे ही मान्यता थी। मुगल शासक अकबर ने यहाँ किले का निर्माण करवाया तथा संभवतः उसी ने इसका नाम इलाहाबाद रख दिया। उसने राजकीय आदेश के जरिये अशोक के स्तम्भ को कौशाम्बी से मँगाकर यहाँ सुरक्षित करवा दिया। स्तम्भ पर जहाँगीर तथा बीरबल लेख भी यहाँ अंकित है। मुगलकाल में खुसरोबाग का निर्माण हुआ।

Related Articles

error: Content is protected !!