प्राचीन इतिहास तथा संस्कृति के प्रमुख स्थल वैशाली
बिहार प्रान्त के मुजफ्फरपुर जिले से 20 मील दक्षिण-पश्चिमी की ओर स्थित बसाढ़ नामक स्थान ही प्राचीन काल का वैशाली नगर था। रामायण में इसे ‘विशाला’ कहा गया है। बुद्धकाल में यहाँ लिच्छवियों का प्रसिद्ध गणराज्य था। यह गणराज्यों में सबसे बड़ा और शक्तिशाली था। इसकी केन्द्रीय समिति में 7707 राजा थे। वैशाली बुद्धकाल का एक शक्तिशाली था। ललितविस्तार में इसे महानगर कहा गया है।
यह जैन तथा बौद्ध धर्म का केन्द्र था। महावीर ने अपने जीवन के प्रारम्भिक तीस वर्ष यहीं बिताये तथा कई बार उन्होंने यहाँ उपदेश भी दिया। उनकी माता त्रिशला वैशाली गण के प्रमुख चेटक की बहन थीं। गौतम बुद्ध को भी यह नगर बहुत प्रिय था। लिच्छवियों ने उनके ठहरने के लिए महावन में कूटाग्रशाला का निर्माण करवाया था यहाँ बुद्ध ने कई बार उपदेश दिये थे। इस नगर की प्रसिद्ध वधू आम्रपाली उनकी शिष्या बनी तथा उसके भिक्षुसंघ के लिए आम्रवाटिका दान में दिया था। लिच्छवि राज्य बड़ा समृद्ध एवं शक्तिशाली था। मगधनरेश अज्ञातशत्रु ने कूटनीति द्वारा उसने फूट डलवा दी तथा फिर उस पर अधिकार कर लिया। तत्पश्चात् लिच्छवि दीर्घकाल तक दबे रहे। कुषाणों के पतन के बाद तथा गुप्तों के उदय के समय गंगा घाटी पर उन्होंने पुनः अपनी स्वाधीनता घोषित कर दी।
फाहियान तथा हुएनसांग दोनों ने वैशाली नगर का वर्णन किया है। उन्होंने इसकी सम्पन्नता का वर्णन है। यहाँ कई स्तूप तथा विहार थे। लोग सच्चे और ईमानदार थे। भूमि बड़ी उपजाऊ थी। हुएनसांग ने वैशाली की द्वितीय बौद्ध संगीति का उल्लेख किया है, जिसमें सात सौ भिक्षुओं ने भाग लिया था। वैशाली के समीप ही बखिरा है जहाँ से अशोक का सिंहशीर्ष स्तम्भ लेख मिलता है। बसाढ़ के खण्डहरों में राजप्रसाद एव स्तूप के अवशेष है। यहाँ से कुछ मुद्राएँ भी मिलती है। यहाँ के टीले की खुदाई ब्लाख महोदय ने की थी। 1903-04 से 1958-62 ई. तक यहाँ पाँच उत्खननों में बड़े पैमाने पर खुदाई की गई। उपलब्ध भौतिक अवशेषों से सूचित होता है कि ई. पू. 50 से लेकर 200 ई. तक यहाँ एक समृद्ध नगर था।
कुषाणकाल अवशेषों सुराहीनुमा हजारे, गहरे कटोरे, ईंटों के मकान तथा 77 फूट लम्बी एक दीवार आदि है। कुषाणकालीन सिक्के तथा लगभग दो हजार मुहरें मिलती है जिनमें अधिंकाशतः शिल्पियों, व्यापारियों सौदागरों एवं उनके नियमों की है। गुप्तकालीन अवशेष ऊँचे अपेक्षाकृत घटिया किस्म के है जिनसे नगर की पतन की धारणा बनती है।
References : 1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव
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