प्राचीन कालीन राज्य के प्रकार
प्राचीन भारत में सामान्यतः राजतंत्र का ही प्रचलन था, जिसके शासन सत्ता एक वंशानुगत राजा के हाथ में होती थी। किन्तु प्राचीन साहित्य एवं विदेशी लेखकों के विवरण से पता चलता है, कि राजतंत्रात्मक राज्यों के साथ ही साथ प्राचीन इतिहास के विभिन्न युगों में कुछ अन्य प्रकार के राज्य भी थे। इनका विवरण इस प्रकार हैं-
गण अथवा संघ राज्य
इसमें शासन-सूत्र एक आनुवंशिक राजा के हाथ में न होकर गण अथवा संघ के हाथ में होता था। प्राचीन साहित्य में इस प्रकार के राज्य को वैराज्य की संज्ञा प्रदान की गयी है। सिकंदर के आक्रमण के समय सिंध तथा पंजाब तथा बुद्धकाल में गंगाघाटी के मैदानों में कई गणराज्य विद्यमान थे। इनमें मालव, अर्जुनायन, लिच्छवि, मद्रक, शाक्य, मोरिय आदि विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। इसका शासन एक केन्द्रीय समिति अथवा संस्थागार के माध्यम से संचालित होता था।
द्वैराज्य
इस राज्य के प्रकार से तात्पर्य है, जिसमें एक ही साथ दो राजाओं का शासन होता है। यूनान के नगर स्पार्टा में इस प्रकार का शासन था। यूनानी लेखकों के विवरण से पता चलता है, कि सिकंदर के भारत आक्रमण के समय पाटल (सिंध) में इस प्रकार का शासन तंत्र प्रचलित था। अल्तेकर का विचार है, कि जब दो भाइयों अथवा उत्तराधिकारियों ने राज्य का बँटवारा करने के स्थान पर सम्मिलित रूप से शासन करना पसंद किया हो, तभी द्वैराज्य का सूत्रपात होता होगा। किन्तु इस प्रकार का शासन टिकाऊ नहीं रहा तथा ये राज्य गुटबंदी और आपसी संघर्ष के केन्द्र रहे होंगे। अर्थशास्र में कहा गया है, कि द्वैराज्य परस्पर संघर्ष में नष्ट हो जाता है। जैन ग्रंथ आचारांगसूत्र में भिक्षुओं को सलाह दी गयी है, कि वे ऐसे राज्यों में न जायें। द्वैराज्य के दोनों शासक जब परस्पर मेल से रहते थे, तो वह द्वैराज्य तथा जब उनमें परस्पर संघर्ष होता था, तो वह विरुद्ध राज्य कहा जाता थआ।
नगर-राज्य
इसमें किसी प्रमुख नगर को राजधानी बनाकर समीपवर्ती भागों पर शासन किया जाता था। ऐसे राज्यों का प्रचलन प्राचीन यूनान में अधिक था। यूनानी लेखों के विवरण से सूचित होता है, कि सिकंदर के आक्रमण के समय पश्चिमोत्तर भारत में भी कुछ राज्य उसी प्रकार के थे। न्यासा, शिवि, पिम्प्रमा आदि कुछ नगर राज्य यहाँ विद्यमान थे। एरियन हमें बताता है, कि सिकंदर ने न्यासा से एक-सौ प्रमुख नागरिकों के बंधक में रूप में माँगा था। जिस पर वहाँ के शासक ने यह कहते हुये अपनी असमर्थता व्यक्ति की थी, कि इतने नागरिकों के छिन जाने से नगर का शासन ठप्प पङ जावेगा। इसमें स्पष्ट है, कि यहाँ नगर राज्य था।
संघीय तथा संयुक्त राज्य
प्नाचीन भारत में संघीय अथवा सम्मिलित राज्यों के अस्तित्व के भी प्रमाण मिलते हैं। उत्तर वैदिक युग में कुरु-पंचाल राज्यों का एक संघ था। सिकंदर के आक्रमण के समय पंजाब में मालव तथा क्षुद्रक गणों का एक संघ राज्य था। यौधेय गणराज्य में भी तीन राज्य सम्मिलित थे। बुद्धकाल में वज्जिसंघ तथा मल्लेसंघ जैसं शक्तिशाली राज्य स्थापित हुये थे। जैन ग्रंथों से पता चलता है, कि लिच्छवि प्रमुख चेटक ने मगधराज अजातशत्रु का सामना करने के लिये नौ लिच्छवियों, नौ मल्लों तथा काशीकोशल के 18 राजाओं का संघ-स्थापित किया था। संघीय राज्यों की शासन पद्धति के विषय में ज्यादा जानकारी प्राप्त नहीं होती है।
इस प्रकार प्राचीन भारत में हमें विभिन्न श्रेणी के राज्यों के अस्तित्व दिखाई देते हैं। इनमें सर्वाधिक मान्य एवं प्रचलित व्यवस्था राजतंत्र ही थी। अति प्राचीन काल से राजा को ही सत्ता का स्रोत माना गया तथा यह मान्यता थी, कि समस्त अधिकारी तथा संस्थायें उसी से अधिकार ग्रहण करते हैं।
References : 1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव
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