इतिहासप्राचीन भारत

भारत तथा दक्षिण-पूर्व एशिया के बीच संबंध

दक्षिण-पूर्व एशिया के अंतर्गत कम्बोडिया, चंपा, बर्मा, स्याम (थाईलैण्ड), मलय प्रायद्वीप जिन्हें सामूहिक रूप से हिन्द-चीन कहा जाता है, तथा पूर्वी द्वीप समूह के सुमात्रा, जावा, बोर्नयों और बाली के द्वीप सम्मिलित हैं। प्राचीन भारतवासी इस संपूर्ण क्षेत्र को सुवर्णभूमि तथा सुवर्ण-द्वीप नाम से जानते थे, जो गरम मसाले, स्वर्ण, बहुमूल्य धातुओं, खनिजों के लिये प्रसिद्ध था। धन की लालसा ने भारतीय व्यापारियों को इन प्रदेशों की ओर आकर्षित किया, जो समुद्री आपदाओं की उपेक्षा कर वहाँ जा पहुँचे। उन्होंने न केवल अपने उपनिवेश बसाये, अपितु इन प्रदेशों में स्वतंत्र हिन्दू राज्यों की स्थापना भी कर डाली। साहित्यिक तथा पुरातात्विक प्रमाणों से यह संकेत मिलता है, कि दूसरी शताब्दी से लेकर पन्द्रहवीं शताब्दी तक यहां भारतीय राजवंशों ने शासन किया।

प्राचीन साहित्य में स्थान-स्थान पर हमें सुवर्णभूमि की यात्रा करने वाले व्यापारियों के साहस की कहानियाँ मिलती हैं। जातक ग्रंथों, बृहत्कथा, मिलिन्दपन्हों, निद्देश, पेरीप्लस तथा टालमी के विवरणों आदि में ये सुरक्षित हैं। दीपवंश तथा महावंश के अनुसार सोण तथा उत्तर नामक बौद्ध भिक्षुओं ने सुवर्ण भूमि में जाकर अपने धर्म का प्रचार किया था। जातक ग्रंथों में मरुकच्छ बंदरगाह से व्यापारियों के सुवर्ण भूमि जाने का उल्लेख मिलता है। महाजनक जातक में एक राजकुमार का सुवर्णभूमि के कुछ व्यापारियों के साथ सुवर्ण भूमि जाने का उल्लेख मिलता है। अर्थशास्त्र, कथासरित्सागर, पुराण आदि ग्रंथों में भी सुवर्णभूमि का उल्लेख मिलता है। रामायण में यवनद्वीप(जावा तथा सुमात्रा) का उल्लख मिलता है। जहाँ सोने की खानें थी।

क्लासिक विवरणों से भी सुदूरपूर्व के द्वीपों के साथ भारत के व्यापारिक संबंधों का पता चलता है। पेरीप्लस तथा टालमी ने छैरसे का उल्लेख किया है, जिससे तात्पर्य सुवर्णद्वीप से ही है। अरबी लेखक अलबरूनी भी सुवर्णद्वीप का उल्लेख किया है। इस प्रकार विभिन्न साहित्यिक साक्ष्यों से यह स्पष्ट होता है, कि भारत तथा सुदूर-पूर्व के बीच संपर्क का मुख्य प्रेरक विभिन्न साहित्यिकक साक्ष्यों से यह स्पष्ट हो जाता है, कि भारत तथा सुदूर-द्वीप के बीच संपर्क का मुख्य प्रेरक व्यापार व्यापार ही था। जल तथा स्थल दोनों ही मार्गों का उपयोग व्यापारी करते थे।

ताम्रलिप्ति तथा फ्लोर उस काल में प्रमुख बंदरगाह थे, जहाँ से जल मार्ग द्वारा व्यापारिक जहाज बंगाल की खाङी के पार करते हुये, मलाया तथा पूर्वी द्वीपों तक जाते थे। स्थल मार्ग, बंगाल, मणिपुर, कर्पूरद्वीप आदि विभिन्न नाम भी हमें भिन्न-भिन्न साहित्यिक ग्रंथों में प्राप्त होते हैं। कालांतर में यह व्यापार-वाणिज्य संबंध राजनीति तथा सांस्कृतिक संपर्क में परिणत हो गया। भारतीय व्यापारियों ने अपनी संस्कृति को वहाँ फैलाया तथा कुछ व्यापारी इन देशों में स्थायी तौर पर बस गये और अपने-अपने मतों का प्रचार किया। विभिन्न स्त्रोतों के आधार पर हम कह सकते हैं, कि ईसा की दूसरी शताब्दी तक हिन्द-चीन में भारतीय राज्यों की स्थापना हो चुकी थी। उपनिवेशीकरण तथ व्यापारिक संपर्क तो इस तिथि के बहुत पहले ही प्रारंभ हो चुके थे।

References :
1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव 

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