शाकंभरी के चौहान वंश का राजनैतिक इतिहास
12 वी. शता. का सर्वाधिक शक्तिशाली एवं विस्तृत साम्राज्य चौहानों का था। इस राजवंश का उदय जांगल देश में हुआ, जिसे बाद में सपादलक्ष कहा गया। इसकी राजधानी अहिच्छत्रपुर में थी। इस स्थान की पहचान मारवाङ के नागौर (जिसे प्राचीन नागपुर) से की जाती है। पहले बीकानेर राज्य के भू-भाग को जांगल कहा जाता था। सपादलक्ष का अर्थ है- सवा लाख ग्रामों वाला क्षेत्र।

शाकम्भरी के चाहमान या चौहान वंश, एक राजवंश था जिसने वर्तमान राजस्थान तथा इसके समीपवर्ती क्षेत्रों पर 7वीं शताब्दी से लेकर 12वीं शताब्दी तक शासन किया। उनके द्वारा शासित क्षेत्र सपादलक्ष कहलाता था।
जांगलदेश के पहले राजा का नाम वासुदेव था। जिसने अजमेर के उत्तर में सांभर (शाकंभरी) क्षेत्र पर अपना अधिकार कर लिया। दशरथ शर्मा का विचार है, कि चाहमान नामक व्यक्ति इस वंश का संस्थापक था।
शाकंभरी स्थानीय देवी का नाम था, जिसके उपासक चाहमान थे।
साहित्यिकत स्रोतों – पृथ्वीराज विजय तथा सुरजनचरित, आदि से पता चलता है, कि इसी देवी की कृपा से वासुदेव ने सांभर क्षेत्र को प्राप्त किया था।
चौहान वंश, प्रसिद्ध वंशों में से अन्यतम है।
इतिहासविदों का मत है कि, चौहानवंशीय जयपुर के साम्भर तालाब के समीप में, पुष्कर-प्रदेश में और आमेर-नगर में निवास करते थे। उत्तरभारत में विस्तृत रूप से फैले हैं। उत्तरप्रदेश राज्य के मैनपुरी बिजनौर जिले में अथवा नीमराणा राजस्थान में बहुधा निवास करते थे। चौहानों का आधिपत्य संपूर्ण उत्तर भारत में था।चौहान वंश की कुलदेवी माता शाकंभरी देवी है जिन का मंदिर उत्तर प्रदेश के जिला सहारनपुर में बना हुआ है जब चौहानों ने अपने राज्यों का विस्तार किया तब वे समस्त उत्तर भारत में फैल गये। चौहान जहां जहां भी गए उन्होंने वहां वहां अपनी कुलदेवी माता शाकंभरी के मंदिरों का निर्माण करवाया।
इतिहास के स्रोत
शाकंभरी के चौहान शासकों का इतिहास हमें उसके शासकों द्वारा खुदवाये गये लेखों तथा समकालीन साहित्य से ज्ञात होता है। इस वंश के प्रारंभिक इतिहास तथा वंशावली का पता हमें विग्रहराज द्वितीय के हर्ष (जयपुर, राजस्थान) प्रस्तर अभिलेख तथा सोमेश्वर के समय के बिजोलिया प्रस्तर अभिलेख से होता है।…अधिक जानकारी
शाकंभरी के चौहानों की प्रारंभिक राजनैतिक स्थिति–
प्राचीन काल में चाहमान वंश की कई शाखायें थी, जो कन्नौज के प्रतिहारों की सामंत थी। इनमें शाकंभरी वाली शाखा ने ही सामंत स्थिति से ऊपर उठकर सार्वभौम स्थिति प्राप्त की थी। वासुदेव के बाद सामंतराज शासक बना। सामंतराज का उत्तराधिकारी नरदेव अथवा पूर्णतल्ल था, जो एक साधारण शासक था। उसके बाद अजयराज अथवा जयराज शासक बना, जिसने अजमेर के दुर्ग (अजमेरु) का निर्माण करवाया तथा अजमेर नगर की स्थापना की। उसके बाद विग्रहराज, चंद्रराज, गोपेन्द्रराज बारी-2 से शासक बने। गोपेन्द्र का पुत्र तथा उत्तराधिकारी दुर्लभराज प्रतिहार नरेश वत्सराज का सामंत था तथा अपने स्वामी की तरफ त्रिकोण संघर्ष में भाग लिया था। इसने धर्मपाल को युद्ध में पराजित कर गौङ देश को प्राप्त किया था।
त्रिकोणीय संघर्ष किस-किस के बीच हुआ ?
दुर्लभराज का पुत्र गूवक उसके बाद राजा बना। इसके बाद चंद्रराज द्वितीय राजा बना। इसका पुत्र गूवक द्वितीय शासक बना।इसने अपनी बहन कलावती का विवाह प्रतिहार शासक भोज के साथ किया था। इसके बाद इसका पुत्र चंदनराज शासक बना। चंदनराज का पुत्र और उत्तराधिकारी वाक्पतिराज था, जो साहसी तथा वीर था, राजा बना। सर्वप्रथम वाक्पतिराज ने ही अपने वंश में महाराज की उपाधि धारण की थी। वह शिव का उपासक था, जिसने पुष्कर में एक भव्य शैवमंदिर का निर्माण करवाया था। उसने चाहमान वंश को इतना शक्तिशाली बना दिया कि वह प्रतिहार सत्ता की अधीनता से मुक्त होने में समर्थ हो गया।
प्रभुतासंपन्न चौहान वंश का उत्कर्ष तथा शासक निम्नलिखित हैं-
देवपाल के राज्यकाल के बाद ही चाहमान नरेश सिंहराज ने प्रतिहारों की अधीनता से मुक्त होने का जोरदार प्रयास किया तथा स्वयं ने महाराजाधिराज की उपाधि धारण कर ली। उसके अधिपति देवपाल अथवा विजयपाल ने अपनी सत्ता पुनः स्वीकृत कराने के उद्देश्य से जो सेना भेजी, उसे सिंहराज ने पराजित किया तथा तोमरवंशी सलवण की हत्या कर उसके कई सहायकों को बंदी बना लिया।…अधिक जानकारी
चौहान शासक सिंहराज के बाद उसका पुत्र तथा उत्तराधिकारी विग्रहराज द्वितीय (Vigraharaj II) चौहान वंश का शासक बना। विग्रहराज द्वितीय ही अपने वंश का स्वतंत्र शासक था। हर्ष लेख में कहा गया है, कि उसने अपने वंश की राजलक्ष्मी का उद्धार किया था।…अधिक जानकारी
चौहान शासकविग्रहराज द्वितीय के बाद उसका छोटा भाई दुर्लभराज द्वितीय राजा बना, क्योंकि विग्रहराज द्वितीय के कोई पुत्र नहीं था। लेखों में दुर्लभराज द्वितीय को दुर्लघ्यमेरु अर्थात् जिसकी आज्ञा का उल्लंघन न किया जा सके कहा गया है। किन्तु हम उसकी किसी भी उपलब्धि के बारें में ज्यादा नहीं जानते हैं।…अधिक जानकारी
चौहान शासक दुर्लभराज द्वितीय के बाद उसका पुत्र गोविंदराज द्वितीय राजा बना, जिसे वैरिधरट्ट अर्थात् शत्रुओं को नष्ट करने वाला कहा गया है।
प्रबंधकोश तथा मुस्लिम लेखक फरिश्ता के विवरण से पता चलता है,कि उसने सुल्तान महमूद गजनवी को पराजित किया था।…अधिक जानकारी
चौहान शासकचामुण्डराज के बाद उसका पुत्र दुर्लभराज तृतीय राजा बना। उसे वीर सिंह भी कहा जाता है। प्रबंधकोश से पता चलता है, कि उसने गुजरात के चालुक्य नरेश कर्ण को हराया था। बताया गया है,कि वह गुर्जर नरेश को जंजीरों में बांध कर अजमेर लाया तथा उसे बाजार में दही बेचने को मजबूर किया।…अधिक जानकारी
चौहान शासक दुर्लभराज तृतीय के बाद उसका भाई विग्रहराज तृतीय शासक बना। उसके समय में परमारों के साथ चौहानों की मित्रता स्थापित हुई।…अधिक जानकारी
चौहान शासक विग्रहराज तृतीय का पुत्र तथा उत्तराधिकारी पृथ्वीराज प्रथम अपने पिता के बाद गद्दी पर बैठा। एक लेख में उसे परमभट्टारक महाराजाधिराजपरमेश्वर कहा गया है, जो उसकी शक्ति का परिचायक है। पृथ्वीराजविजय के अनुसार उसने सात सौ चालुक्यों को पराजित कर मार डाला था, जो ब्राह्मणों को लूटने की नियत से पुष्करतीर्थ में घुस आये थे। यह घटना गुजरात के चालुक्त नरेश कर्ण अथवा उसके उत्तराधिकारी जयसिंह सिद्धराज के समय की है।…अधिक जानकारी
चौहान शासक पृथ्वीराज प्रथम के बाद उसका पुत्र अजयराज शासक बना। वह एक कुशल योद्धा तथा महान विजेता था। पृथ्वीराजविजय के अनुसार उसने मालवा के राजा सुल्हण को पराजित किया तथा उसे घोङे की पीठ पर बांधकर अजमेर ले आया। यह सुल्हण संभवतः परमार नरेश नरवर्मा का सेनापति था।
चौहान शासकअजयराज का उत्तराधिकारी उसका पुत्र अर्णोराज हुआ, जिसने 1130 ईस्वी से लेकर 1150 ईस्वी तक शासन किया। लेखों में उसे महाराजाधिराज, परमेश्वर, परमभट्टारक की उपाधि प्रदान की गयी है। इन उपाधियों से पता चलता है, कि वह एक शक्तिशाली राजा था।
विग्रहराज चतुर्थ (1153-1163ईस्वी) सर्वाधिक शक्तिशाली शासक था। उसका शासन चाहमान वंश में एक अविश्मरणीय अध्याय है। उसने अपने समकालीन उत्तर भारत के समस्त राजवंशों को पराजित कर अपने वंश को सार्वभौम स्थिति में ला दिया। परमार साम्राज्य के विघटन के बाद देश की पश्चिमोत्तर सीमा की रक्षा का भार चाहमानों पर ही आ पङा तथा विग्रहराज ने सफलतापूर्वक उसका निर्वहन किया। उसने लाहौर के यामिनी वंश की शक्ति का भी विनाश किया था तथा उसके बारंबार होने वाले आक्रमणों से देश की रक्षा की।…अधिक जानकारी
विग्रहराज चतुर्थ के बाद उसका पुत्र गांगेय कुछ समय के लिये राजा बना, किन्तु उसकी हत्या कर पृथ्वीराज ने राजगद्दी पर अपना अधिकार कर लिया था। वह इतिहास में पृथ्वीराज द्वितीय के नाम से प्रसिद्ध है। पृथ्वीराज विग्रहराज के बङे भाई जगद्देव का पुत्र था। तुर्कों के आक्रमण से अपने साम्राज्य की रक्षा करने के लिये उसने हांसी के दुर्ग पर अपना अधिकार सुदृढ कर लिया
पृथ्वीराज द्वितीय ने 1164 से 1169 ईस्वी तक शासन किया था। उसका कोई पुत्र नहीं था, अतः उसकी मृत्यु के बाद उसके चाचा सोमेश्वर ने सत्ता ग्रहण की। उसका बचपन चालुक्यों की राजधानी अन्हिलवाङ में व्यतीत हुआ। कुमारपाल की देखरेख में वह बङा हुआ तथा सेना में उच्च पद भी प्राप्त किया था

सोमेश्वर की मृत्यु के बाद उसकी रानी कर्पूरदेवी से उत्पन्न पृथ्वीराज चौहान वंश का सबसे प्रतापी शासक था। इतिहास में पृथ्वीराज को पृथ्वीराज तृतीय तथा पृथ्वीराज चौहान के नाम से भी जाना जाता है।
References : 1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव
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