प्राचीन इतिहास तथा संस्कृति के प्रमुख स्थल मथुरा
भगवान कृष्ण की जन्मस्थली मथुरा प्राचीन भारत की प्रसिद्ध नगरी थी। रामायण के अनुसार ‘मधु’ नामक दैत्य ने इस नगर को स्थापित किया जिससे इसे ‘मधुपुर’ कहा गया। महाभारत के समय ‘मथुरा’ शूरसेन महाजनपद की राजधानी थी। इस राज्य का उल्लेख ईसा पूर्व छठीं शती के महाजनपदों में भी है। इस समय यहाँ का शासक अवन्तिपुत्र (अवंतिपुत्तों) था, जिसने यहाँ बौद्ध धर्म का प्रचार करवाया था।
मौर्यकाल में यह नगर कृष्णोपासना का केन्द्र था। मेगस्थनीज इसे ‘मेथोरा’ कहता था। जैन-साहित्य में भी इस नगर की समृद्धि का वर्णन है। शुंगों के समय में यह प्रसिद्ध नगर था। गार्गी संहिता के अनुसार यवनों ने इसे जीता। तत्पश्चात् यहाँ शक–क्षत्रपों ने शासन किया। महाक्षत्रप षोडास का लेख यहाँ मिलता है। उसने यहाँ एक सिंह शीर्ष स्तम्भ निर्मित करवाया था। कुषाणकाल में यहाँ कला की एक स्वतंत्र शैली विकसित हुई जिसके अन्तर्गत बुद्ध तथा बोधिसत्व मूर्तियों का निर्माण हुआ। कनिष्क के शासन का पश्चिमी केन्द्र यहाँ था जहाँ का शासक महाक्षत्रप खरपल्लान था। विमकडफिसेस तथा कनिष्क की मूर्तियाँ भी मथुरा से मिलती है।
गुप्तकाल में मथुरा प्रसिद्ध स्थान रहा। यहाँ हिन्दू तथा बौद्ध प्रतिमाओं का निर्माण हुआ। फाहियान के अनुसार यहाँ बीस विहार थे जिनमें तीन हजार भिक्षु निवास करते थे। मथुरा से गुप्तकाल की एक सुन्दर बुद्ध प्रतिमा प्राप्त हुई है। यह विदेशी प्रभाव से पूर्णतया मुक्त है। गुप्तकाल के पश्चात् इसन नगर का गौरव समाप्त हो गया। हुएनसांग ने यहाँ के स्मारकों को उजड़ा हुआ पाया था।
References : 1. पुस्तक- प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति, लेखक- के.सी.श्रीवास्तव
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