भक्ति साहित्य

भक्ति रौ उद्भव के कारण

भक्ति रौ उद्भव के कारण

भगती रो उद्भव


आर्य लोग प्रकृति पूजक हा। उणां री जिन्दगी में करमकांड री प्रधानता ही। बै प्राकृतिक तत्वां, हवा, जळ, आग, चाँद, सूरज आद नै देवता मानता हा। बै इणा री वंदना करता अर इणसूं आप रै जीवन में सुख अर सम्पन्नता री कामना भी करता हा। भौतिक सुखां कानी ध्यान होणै रै कारण आर्य अन्तःकरण री साधना रै बजाय बा’रलै विधानां कानी जादा ध्यान देंवता हा। बै हवन बङी श्रद्धा अर विस्वास रै साथै करया करता हा।

अठै सूं ‘श्रद्धा मूलक भगती’ रो जलम हुयौ अर बहुदेववाद री जागां अेकदेव उपासना री सरूआत हुयी। मोनियार विलियम मुजब भगती सबद री व्युत्पत्ति ‘भज्’ धातु सूं करी जा सकै। इण रै आधार पर आपां कैय सकां कै आर्यां रै दार्सनिक अर आध्यात्मिक विचारां रै कारण श्रद्धा, विस्वास, उपवास आद सूं विकसित होय’र उपास्य भगवान री महिमा रै व्यापक भाव में बदळगी। भगती भाव रो सबसूं पैलो लेख ‘उपनिषद’ में मिलै।

गीता में भगवान क्रिसन भी भगती री मैहमा बताई है। सांडिल्य अर नारद रै ‘भगवती सूत्र’ में भगवान री भगती
रो खूब बखाण हुयौ है। सांडिल्य रै मुजब भगती सूं इ स में अटल, अणूंतो, अविभेद्य अर कदै नीं खत्म होवणाळो
प्रेम जगायो जा सकै।

पौराणिक रो मूळ ‘व्यक्ति परक श्रद्धा’ में हुवै इणमें परमात्मा री कल्पना जरूरी है। ‘विष्णु पुराणं’ में विष्णु नै इ परमसत्त रो रूप बतायो गयो है। भगवान विष्णु आप री जोगमाया (लिछमी) साथै परम धाम बैकुण्ठ में जोग
नींद में (योग निद्रा) तल्लीन रैवै।

श्रद्धा, बिस्वास अर प्रेम इ इण भगती री तागत है। इणां रै माध्यम सूं भगत आखिर में आप रै इस्टदेव (भगवान) में लीन हो जावै। भगती ताईं ओ जरूरी है कै बो तन, मन, धन आद सगळो कीं भगवान नै इ अरपण कर दैवै। भगती रो पूरो रूप ‘उपनिषद’ पछै इ उभर’र सामू आवै। इण भांत आ बात कैयी जा सकै कै भगती री परम्परा भारत में घणी जूनी है। विदेसी सत्ता रै आगमन सूं इण में थोङी ‘संवेदनात्मक रूप’ सूं जरूर बढोतरी हुयी वरना भगती रा बीज तो पैली सूं मौजूद हा।

उद्भव रा कारण

समाज में जद भी कोई आन्दोलन सरू व्है बीं रै पाछै कोई कारण जरूर हुवै।

भगती आन्दोलन आखै भारत में फैल्यो इण रा भी कैई कारण हा, जकां रो अध्ययन इणा बिन्दुवां में करयो जावैला –

(1) पैलो कारण तो ओइ ज हो कै भारतीय समाज प्राचीन रूढियां में इतरो जकङीज चुक्यौ हो कै बठै किणी सामाजिक न्याय री आस करणी बेकार ही। समाज री प्रगति थम चुकी ही। समाज री बागडोर कीं तथाकथित ऊँचै लोगां रै हाथां में ही जकां नै बदलाव रो डर इण कारण लागै हो कै सगळा हक छीन लिया जावैला।

अैङी परिस्थितियाँ में उतरादै भारत में बौद्ध अर जैन धरमां रो उदय हुयौ। अे दोन्यूं धरम रूढ़ बणेङा हिन्दू या सनातन धरम रो विरोध करै हा। अेक बखत तो आखै भारत में जैन अर बौद्ध धरमां रो दबदबो होग्यौ पण बखत बीतणै रै साथै-साथै अै धरम भी रूढियां में बंधग्या।

नतीजो ओ हुयो कै इणा में विद्रोह होग्यो अर अै कैई साखावां में बंटग्या। उतरादै भारत में सिद्धां रो आन्दोलन बौद्ध धरम री रूढिवादिता पर चोट कर सामाजिक न्याय री मांग करै हो। उतरादै भारत पर लगोलग विदेसी हमला होंवता रैया इण कारण सूं भी बदळाव आवै हो।

यूनानी, सक, हूण, तुर्क, मंगोल, अफगान आद रा हमला उतरादै भारत नै बरोबर झेलणा पङया। इण में घणकरा विदेसी हमलावर अठै इ बसग्या। इणा में अठै रै पुराणै रैवणाळां साथै खूब सांस्कृतिक अर वैचारिक आदान-प्रदान होंवतो। मुसलमानां रै आणै तक आइज हालात रैइया ।

हालांकै समाज में भेद-भाव तो हो पण इतरो गैहरो कोनी हो। अठै अेक बात आ ध्यान करण जोग है कै सामाजिक अन्याय रो विरोध पिछङी नीची जात रा लोग इ करैहा। सिद्धां में ओ विरोध कीं जादा हो।

(2) दिखणादै भारत री स्थिति उतरादै भारत सूं अलग ही। दिखणादै भारत नै विदेसी हमला कोनी झेलणा पङ्या इण कारण बठै रो समाज ज्यादा रूढी हो। धरम री धज्जा सामन्त अर ब्राह्मणा राखी ही। धन रा सगळा स्रोत बां रै काबू में हा। बै जैङो भी काम करता धरम री ओट लैय’र करता।

गरीब, पिछङे अर नीचै तबकै रै लोगां नै बां मिनख समझणौ इ छोङ दियौ तो। भगवान रो नांव लैय’र अर करमां रो दंड बताय’र बे लोगां रो सोसण करया जांवता। अे हालात देख’र प्रबुद्ध अर संवेदनसील लोगां नै चिन्ता हुई। बै धरम री पुनर्थापना रो बीङो उठा लियौ। इणमें सब सूं आगै शंकराचार्य हा।

बै धरम री पुराणी व्याख्या करता थकां विद्रोह रा पैला उदघोषक हा। ‘अहं बह्मास्मि’ या ‘एकोब्रह्मद्वितीयोनास्ति’ कैय’र बां मिनख-मिनख नै बरोबर बतायौ।

बां कैयो कै धरम पर किणी रो अेकाधिकार नीं हो सकै। शंकराचार्य पछै रामानुजाचार्य सगळै मिनखां नै भगती रा अधिकारी बताय’र इण सामाजिक अर सांस्कृतिक क्रान्ति नै अेक अेक मिनख तक पुगाई , जकी आगै चाल’र राष्ट्रीय अेकता अर समन्वय रो कारण बणी।

दक्खणी भारत रै इण आन्दोलन, उतरादै भारत नै पूरी तरै प्रभावित करयौ। अठै बा बात भी देखणवाळी है कै पुराणै जुग में उतरादै अर दिखणादै भारत रा इतरा भेद कोनी हा, जितरा आज
दीखै। बीं बखत सांस्कृतिक रूप सूं भारत अखण्ड हो। इणीज कारण दिक्खणी भारत में उठेङो अद्वैतवादी आन्दोलन आखै भारत रो आन्दोलन बणग्यौ।

वातावरण

किणी आन्दोलन रै उद्भव अर विकास रो इतिहास जाणणै तांई ओ भी जरूरी है कै उण देस अर काल री राजनैतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक अर धार्मिक परिस्थितियां रो अध्ययन करयौ जावै। इणसूं इ बेरो पङैलो क बो आन्दोलन उण काल अर देस में कींकर उठ्यो अर पनप्यौ। भगती आन्दोलन री परिस्थितियां रो अध्ययन भी आं ही बिन्दुआं रै तहत करयौ जावैलो।

राजनैतिक वातावरण


भगती साहित्य रै उद्भव रै बखत तांई भारत में मुस्लिम साम्राज्य री थापनां हो चुकी ही। इण सूं पै’ली वाळो संमै घोर अराजकता रो हो। हिन्दू राजा छोटी-छोटी बातां नै लैय’र आपस में लङता रैंवता। बां में ‘अेक राष्ट्र’ री भावना कोनी हीं। जितरो राज अर रुतबो होंवतो बोइ देस होवतो।

हिन्दू राजा खुद पर बिपदा रै बखत मुसलमानां सूं जुद्ध करता। आपस में अेकता रै अभाव रै कारण बै कदैइ भेळा होय’र अेक साथै किणी मुसलमान सासक रो प्रतिरोध कोनी कर सक्या। आपस री फूट रै कारण सगळां री सत्ता बिखरियौङी रैंवती। प्रजा कदैई इण रै तो कदैई उण रै झंडै तळै रैय’र उदासीन भाव धारण कर लियौ।

बा ‘कोऊ नृप होय हमहुं का हानि’सोच’र जैङो राजा होवतो बीं रो हुकम बजावंती। जद मुसलमानां रै राज री थापनां भली भांत होगी तो हिन्दू राजावां रो प्रतिरोध कम हुयग्यौ पण अब मुसलमान आपस में लङणो सरू कर दियौ। नूवां मुसलमान अर पुराणां अफगानां में आपस में ठणगी इण कारण बांरो पूरो ध्यान आप री सत्ता जमाणै में लाग्यो रैयो।

ओइ ज कारण हो कै बे इस्लाम रै प्रचार-प्रसार कानी ध्यान नीं दे सक्या। कूट नीति सूं काम लियौ। अठै रै राजावां अर प्रजा नै खुद कानी मिलाणो सरू करयौ इण खातर बै सहिस्णुता री नीति अपणाई। शेरशाह सूरि अर मुगल हुमायूं रो जुद्ध इण बात रो सबूत है कै शेरशाह आप री नीति अपणाई जिणमें बो सफल रैयो।

इण रै पछै शेरशाह सूरि री मौत अर हुमायूं रो दुबारा भारत पर अधिकार करणो इणरो सबूत है। हुमांयू रै बेटै अकबर भी सहिस्णुता री नीति अपणाी अर सफल हुयौ पण इण
रो ओ मतलब कोनी कै अराजकता जाबक खतम होगी हुवै। सत्ता री चाल तो सामन्ती ढंग री ही। ताकत सताधारी रै हाथां में ही इण कारण प्रजा चाये हिन्दू ही या मुसलमान, दुःखी अर परेसान रैंवती। अठै आ बात भी ध्यान में राखणै जोग है कै देस रो पूरो विकास मुगल काल मैं इ हुयौ। अकबर सूं लैय’र शाहजहाँ तांई माहौल सांत हो।

हालांकै अकबर सरीखी धार्मिक सहिस्णुता दूजै किणी बादसा में कोनी ही पण जहाँगीर आपरी न्याय प्रियता अर शाहजहाँ स्थापत्य कला रै रक्षण रै कारण नाम कमायौ। पैली वाळी सत्ता नै देखतां ओ बखत सुख-स्यांती रो हों इण कारण ओ कैवणो ठीक कोनी है कै भगती काल रो आविर्भाव विदेसी सत्ता रै कारण हुयौ।

इण मुजब डाॅ. राजनाथ शर्मा रो कैवणो है ‘‘इसके लिए तो सैंकङों वर्षों से मेघखंड एकत्र हो रहे थे। हम भगती के इस चरमोत्कर्षकाल में एक नई बात और देखतै हैं, जो यह सिद्ध कर देती है कि
मुसलमानों द्वारा किए जाने वाले अत्याचारों की कल्पना कितनी थोथी और सारहीन है। इस युग में अवतार को मानने वाली दृष्टि में परिवर्त न हो चुका था।’’

सामाजिक वातावरण


सामाजिक खेतर (क्षेत्र) में हिन्दुआं में ऊँच-नीच अर छूआछूत री भावना पैली जिसी इ ही। ऊँची जात अर नईं छोटी जातां में भी उपजाति अर अेक-दूजै सूं नफरत करणै री प्रवृति ही। ऊँच नीच अर छूआ-छूत री इणी भावना धार्मिक विद्रोह नै जलम दियौ। आ प्रवृति अब मुसलमानां में भी आ चुकी ही।

हिन्दुआं रो उच्च वर्ग अहंकारी हो तो मुसलमान सासक दमी हा। बै भी खुद नै कम कोनी समझता। दरअसल सामन्ती वैवस्था रो ओ दुरगुण इ ’ज है कै बा मिनख-मिनख में भेद कर चालै। इणीज कारण कबीर जात पांत नै लैय’र हिन्दू अर मुसलमान दोनुवां नै इ लताङया है –

जे तू बाम्हन, बाम्हनी जाया।
आन राह तें, क्यों नहिं आया।।
जे तू तुर्क , तुर्क नी जाया।
भीतर खतना क्यों न कराया।।


अमीर सदीव सूं गरीबां पर जुलम करता आया है पण अचम्भै री बात है कै कबीर जैङै प्रखर कवि भी इण रो चितराम कोनी खैंच्यौ। तुलसीदास जरूर कैयो है कै जकै राजा रै राज में प्रजा दुःखी हुवै बो सीधो नरक में जावै। कबीर री बजाय गुरू नानक देव तत्कालीन जुलम रो विरोध मुखर रूप सूं करयौ है।

बांरी वाणी में विरोध रा सबूत मिल ज्यावै। कबीर अर बीजै संतां धारमिक ढोंग अर आडम्बरां पर जादा चोट करी है। इणसूं साबित हुवै कै बीं जमानै में ब्राह्मणां रो कितो दबदबो हो। समाज में नारी री दसा ठीक कोनी ही। एक सूं ज्यादा ब्याव रो रिवाज हो। मुसलमान सत्ताधारियां में हरमां में हजारुं लुगायां राखणै रो रिवाज हो।

इण कारण सोवणी लङकियाँ रो अपहरण कर हरम भरया जांवता। इण डर सूं हिन्दु आपरी कन्यावां रो ब्याव बाळपणै मैं इ करणो सरू कर दियौ। बां पर मुस्लिम हुकमरानां री बुरी नजर नीं पङ ज्यावै इण कारण बां में भी पङदै रो रिवाज सरू हुयग्यौ। हिन्दु मुसलमान में इणीजं कारण सामाजिक दूरियाँ बधी अर छुआ छूत घणी बढी।

सांस्कृतिक वातावरण

भगतीकाल दो संस्कृतियां रै टकराव रो जुग हो। हिन्दू संस्कृति आपरी प्राचीनता अर महानता रै दंभ में खुद रै बचाव में लागेङी ही। मुसलमान विजेता हा अर अठै रा नीं हा इण कारण बां री इस्लाम-संस्कृति अठै री संस्कृति नै दबाय’र हावी होणै ही कोसीस करै ही।

इण काल में धरम साधनां री बाढ सी आयगी। गुह्य साधना रै कारण धरमाचार रै नांव पर अनाचार, मिथ्याचार अर व्यभिचार में बढोतरी हुयी। ग्यान चर्चा री ओट में पाखंड हूवण लागग्यो। समाज में अेक भांत री अराजकता फैलगी। कालान्तर में बाहरी आडम्बरां पर व्यंग्य करीजण लागग्यौ।

करम कांड अर बाहरी विधान नै ढोंग बतायो गयौ। अैङी परिस्थितियों में गुरू गोरखनाथ मन री सुद्धता अर आचारण री पवित्रता पर जोर दियो – ‘‘अवधू मन चंगा तो कठौती में गंगा, बाँध्या मेल्हा तो जगत चेला।’’ कैय’र मिनख रै आचारण अर मन री पवित्रता नै चोखी बतायी। इणीज भांत कबीर आद बीजै संतां भी मन री पावनता पर जोर दियो –

कहै कबीर कृपा भई, गुरु ज्ञान कहा समझाई।
हृदय श्री हरि भेंटिये, जो मन अनतै नहिं जाई।।

बौद्ध धरम रै उत्थान साथै इ उच्च वरण री सामाजिक वैवस्था अर धार्मिक संकीर्णता रो विरोध सरू हो चुक्यो हो। विद्रोह री इण लहर नै मध्य युग में कबीर मजबूती दी अर उण नै संकीर्णता सूं मुगत करी। इण भांत विसुद्ध मानवता अर सामाजिक न्याय री भावना रै आधार पर अेक नुवीं संस्कृति रो जलम हुयो जिण में सगळै आडम्बरां नै दूर हटाय’र सगळां नै समेटणै री लालसा ही।

संतां रै इण पुनीत काम में सूफी कवियाँ भी आप रो पूरो योग दियौ। जात, संप्रदाय आद री भावनावां सूं ऊपर उठ’र बां मिनख-मिनख रै हिवङै रै तारां नै जोङणै री अनूठी कोसीस करी। आं दोनुवां मिल’र हिन्दू-मुस्लिम संस्कृति अर धार्मिक भावना में संतुलन बिठाय’र समन्वय लावणै री सफल कोसीस करी।

दोनुवां री कोसीस रै कारण भगती री अेक अैङी पद्धति रो जलम हुयो जिण नै निरगुण धारा नांव मिल्यौ। उणनै जन जन अपणाई। इणीज भांत वेदां सूं चाल’र अद्वैत री धारा कद अवतार वाद में बदल’र ‘वैष्णव भगती’ रै रूप में चाल पङी ओ पत्तो ही नीं चाल्यौ। राम अर क्रिसन विस्णु रा औतार मानीज’र सगुण भगती रा उपास्य देव बण्या। तुलसी ‘सगुनहि-अगुनहि नहिं कछु भेदा’ कैय’र सगुण-निरगुण में समन्वय री कोसीस करी।

धार्मिक वातावरण

मध्यकाल में अनेक धरम प्रचलित हा अर बै आपस में अेक-दूसरै रो विरोध करता। आ विरोधी भावना इतरी जोददार ही कै इण में मारपीट, कत्ल आद होणो आम बात ही। इणकाल खण्ड में भारत में मुख रूप सूं पांच भांत रा सम्प्रदाय हा।

भागवत धरम नै मानणवाळा वैस्णव, सिव री उपासना करणाळा सैव, परम सगती नै मां रै रूप में मानणवाळा मां रा भगत-साक्त, गणेस जी नै इ सो कीं मानणवाळा-गाणपत्य अर सूरज रा उपासक सौर! साथै इ कुळ देवता, ग्राम देवता, लोक देवता आद री पूजा रो विधान भी हो पण इणा री पूजा ‘लोकार्थ’ भाव सूं करी जांवती। विस्णु, सिव, सगती, गणेस अर सूरज री उपासना खुद री पसन्द अर जरूरत रै मुजब करी जांवती।

आं सगळां में सैव सम्प्रदाय सब सूं जादा लोकप्रिय हो। वैष्णव आराधना सैव मत सूं पछै सरू हुई पण इणरो प्रभाव जल्दी इ आखै भारत पर पड़्यौ। पछै दार्सनिक चिन्तन रै कारण द्वैतवाद, भेदाभेदवाद, विसिस्टाद्वैतवाद, द्वैताद्वैतवाद, सुद्धाद्वैतवाद आद भगती आन्दोलन रा आधार बण्या। अै सगळा भी भागवत धरम सूं जुडैङा है। बौद्ध धरम हालांकै सामाजिक न्याय री मांग नै लैय’र जनता सामी आयो पण आगै चाल’र ओ भी वैदिक
धरम
रै प्रभाव सूं खुद नै मुगत कोनी राख सक्यौ। इणरा भी ‘महायान’ अर ‘हीनयान’ दो भेद बणग्या। ‘हीनयान’ आप री दार्सनिक जटिलता रै कारण जनता सूं दूर हटतो गयो जद कै ‘महायान’ रा दरवाजा सब लोगां तांई खुला हा। इण कारण इणनै अपणावण वाळा लोग कम भणिया लिख्या अर पिछङियोङा तबकै सूं ज्यादा आया।

जिणसूं होळै-होळै धरम रो साचो रूप तो लारै छूटग्यौ अर बीं री जांगां तंत्र साधना लेली। जनता नै चमत्कार दिखाय’र वाहवाही लूटणवाळां धरम पर हावी होयग्या। बुद्ध री कठिन साधना री जागां पंचमकार (मांस, मदिरा, मैथुन, मत्सर, मुद्रा) लेली। वाम मारग री प्रधानता रै कारण बौद्ध धरम रो भी पतन होग्यो।

आं विसम परिस्थितियां में नाथ पंथी जोगियाँ सुद्धीकरण अर साधना रो नारो बुलन्द करयौ। साधना में नारी नै वरजित कर दी। मन अर आचरण री सुधता कानी ध्यान देय नाथ पंथी जोगियां योग (हठ) साधना पर बल दियौ। ज्ञान मारग में ‘षट चक्र’ ‘इङा-पिंगला-सुषुम्ना’ सून्य समाधी, कुंडलनी आद रो जिक्र नाथ पंथ रै प्रभाव रै कारण हुयौ।

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